कविता ।। जो मजा है सोने में ।।


 











   जो मजा है सोने में,
     वो मजा नहीं है,
     दुनियाँ के किसी कोने में।

        हो टूटी चार पाई,
        चाहे  हो जमीन पर,
        या बिस्तर लगा हो,
        घर के किसी कोने में
     नींद जिसको जहाँ भी आता है,
     वहीं बैठ जाता है किसी कोने में।
     कैसा है जगह उसे फिकर नहीं,
     मजा आता है  वहीं सोने में।

        कुछ तो मँहगे बिस्तर पर भी,
        तरसता है रात  को  सोने  में।
        कुछ को खड़े बैठे-बैठे ही,
        मजा  आता  है  सोने  में।
          Thanks for reading 📝
                   Ashok Kumar


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