एक चिड़ियाँ कटे पेड़ को ,
देख कर रो रही थी ।
बोली मेरे बच्चे कहाँ गए,
इसी पेड़ पर सो रही थी।
घोंसले के तिनके -तिनके,
जमीन पर बिखर गई थी।
इधर-उधर चह चाकर देखा।
पर बच्चे कहीं नहीं थी ।
कुछ दिन पहले ही तो मैं,
यहाँ घोंसला मैं बनाई थी।
कल ही मैं अपने बच्चो को ,
इस पेड़ पर लेकर आई थी।
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Ashok Kumar ✍
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