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Saturday, October 13, 2018

।। कलम का दर्द ।। Part 2nd










   



एक दिन मुझे कहीं जाना हुआ 
    मैं घर से  रवाना हुआ  ।।
    कुछ दिन बाद लौट कर आया

   मैंअपने टेवल के पास खड़ा था ।।
   मेरा कलम उदास वे सहारा
   टेवल पर पड़ा था ।।

        कलम में वो शरारत था।
        उसके चेहरे पे।।
       खुशियों की आहट था

  कलम बोला अशोक जी ।।
  आप भी काफी दिन से मुझे
  अपने हाथ में उठाया नहीं।।
  टेवल से हिलाया नहीं ।।

       मुझे कागज पर चलाया नहीं
       मुझे कोई सजा तो नहीं दिया है
       आप भी औरों के तरह
       मुझे भुला तो नहीं दिया है ।।

   मुझे लगा अब आप भी।
   इस हल मैं मुझे छोड़ दोगे।।
   और कुछ दिन बाद मुझे
   सड़क पर फेक दोगे ।।
       मैंने कलम से कहा।

   ये बात तुम अपने जूबाँन पर।
   क्यों  लाया  है ।।
   अरे मुझे तो सड़क पर परा
   जो भी कलम दिखा है ।।
   उसको उठा कर मैंन
    कितने ही कविता लिखा है
   
         मैं टेवल के पास से हटने नहीं लगा
         कलम का बात मैं सुनने लगा ।।
         पहले कोई किसी से अगर
        फोन नम्बर पूछ लेते थे ।।
        कागज का टुकड़ा निकाल कर
        मुझ से ही लिख लेते थे ।।

  और अब तो मोबाइल से 
   मोबाइल में भेज देते है  ।।
   और हम जेब में पड़े-पड़े
   जेब से देखते रहते हैं  ।।

        पहले मैं कितना मचलता था
        हर जगह कागज पर
        मैं ही चलता था ।।
        मेरे बिना किसी का कहीं
        दाल ही नहीं गलता था ।।
 अब तो मुझे बार-बार एक ही
 काम के लिए जन्म पड़ेगा ।।
 और न्यायालय में जज के
 पास ही रहना पड़ेगा ।।

      अब मेरा भी नाम
     अपराधी से जोड़ देगा ।।
     अपराधी को सजा लिखेगा
     और मेरा जुबान तोड़ देगा ।।

   और मेरा जुबान तोड़ देगा ।।
   Thanks for reading   📝
                  Ashok Kumar


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