कविता।। मैं जल💧हूँ ।।


     












  
  मैं जल हूँ जग से बोल रहा हूँ 
    मैं सबसे दूर हो जाऊँगा  ।।
    अगर बढाया तापमान
   मैं भाप बन के उड़ जाऊँगा।।
                        
      भाप बन गगन मैं उड़ूँ
      बर्फ में जमे रहने का ।।
      नदी में मैं  बहता रहूँ 
      तालाब में खड़े रहने का ।।
   
   कहीं पर किया है मझे गंदा
   कहीं बेकार  बहा रहा है  ।।
   सूरज भी जलाता है मुझको
   गरम हवा भी पीये जा रहा है ।।
      
      जल के लिए  बेचैन पशु
      ये तपते हुए जेठ महीने में ।।
      जल के लिए कितने ही छेद
      किया है धरती के सिने में ।।
   
   मैं जल हूँ जग से बोल रहा हूँ 
   मैं सबसे दूर हो जाऊँगा  ।।
   अगर बढाया तापमान  ।।                  
   मैं भाप बन के उड़ जाऊँगा।।
   मैं भाप बनके उड़ जाऊँगा।।

   Thanks for reading   📝
                 Ashok  Kumar

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