मुझे न काटो हे मानव ।
मेरा विनती तुम सबसे है ।।
मैं नहीं तो तुम भी नहीं ।
तुम सब का जीवन हमसे है ।।
न मैं खाना मागूँ तुम से ।
और न पानी पीने को ।।
मुझ पर हरियाली रहे ।
जड़ मिट्टी में रहने को ।।
मैं प्राकृतिक का संतान ।
हूँ सबको जीवन देने को ।।
प्राण वायु मैं सबको दूँ ।
खुद दूषित वायु पीने को ।।
मैं रहूँ युगो तक हरा भरा ।
शाखा पर पंछी का बसेरा ।।
मेरा छाया मिले जन-जन को ।
है यही अभिलाषा मेरा ।।
है यही अभिलाषा मेरा ।।
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Ashok kumar
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