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Saturday, September 8, 2018

हास्य व्यंग्य ।। मैं और 15 🇮🇳अगस्त ।।


















दिन 15 🇮🇳अगस्त था
 मैं बिलकुल स्वस्थ था  ।।
 घर से मैं उस दिन
 बन ठन के निकला था ।।
 एक लड़की को देख के
 पहली वार दिल पिघला था ।।
       
     मैंने हिम्मत बटोरा  ।।
     उस लड़की को छेड़ा ।।
     मैं समझा था अकेली 
     पर वो निकला जोड़ा  ।।
   

मैंने उसे छेड़ा था
अबला समझ के ।।
उसके पति ने मुझे पीटा
तवला समझ के  ।।
      
     मैंने कहा मुझे पीटो पर
     सड़क पर मत घसीटो ।।
     सड़क पर काफी डस्ट है ।।
     बोला लंच तुम्हें कीचड़ में देंगे
     ये तो ब्रेक फस्ट है  ।।

 
मेरे ऊपर बुरी तरह से खोफ हो गया
 मेरे मुँ पे मारा मुक्का  ।।
 मेरा दाँत अउट ऑफ मऊथ हो गया ।।
   
     मैंने सोचा आज लड़की को 
     छेड़ने का स्वाद चख लिया ।।
     जमीन पर गिरा हुआ दाँत
     उठाके जेब में रख लिया।।   

 ये सोच कर की
 मै इसी दाँत से खाऊँगा
 किसी अच्छे डॉक्टर से ।।
 ये दाँत लगवाऊँगा ।।
    
     देखने वाले कह रहे थे
     बड़ा मजा रहा है ।।
     ऐसा लगता है सचिन
     शतक बना रहा है ।।
     
 मेरा शर्ट का कालर
 मेरे पीठ पर भटक रहा था।।
 और मेरा पैन्ट
 कच्छा बन के लटक रहा था।।

    मेरा शकल का इतना बुरा हाल
      की अपना भी नहीं पहचान पाया ।।
      फिर अज्ञात लोगों ने
      मुझे होस्पिटल पहुँचाया  ।।
       
  होस्पिटल में डॉक्टर  मुझे देखा  ।।
  मेरे ऊपर क्रोध साधा    ।।
  फिर सर से पाँव तक पट्टी बाँधा ।।
  बोला अब तुम सब कुछ खा सकते हो ।।
  चाहो तो तुम घर भी जा सकते हो  ।।

      
मेरे सर से पाँव तक पट्टी था बंधा।
      मुश्किल था गुलूकोज लगाना ।।
      बोतल ही हाथ में दे दिया 
      बोला पीते हुए घर जाना ।।

 मैं बैड से फिसला 
 होस्पिटल से निकला।।
 जाके  मिनी बस में चढ़ गया।
 जिस बस पर मैं बैठा ।।
 उस बस का सारा सवारी उतर गया
 मुझे समझ चंद्रमा का प्राणी 
 वो सारे डर गया
      
      मैं अकेला ही बैठा रहा 
      बस में एक छोर पे  ।।
      कंडक्टर उतार दिया लाके
       मेरे गली के मोर पे ।।
                      जय हिंद  🇮🇳
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                              Part 1
                  Ashok Kumar

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