हास्य व्यंग्य ।। 15 🇮🇳 अगस्त पे विशेष ।। part 2

      














Part 2
                       

 मैं उतरा अपनी गली के मोर पे
 सभी लोग मुझे देखने लगे ।।
 अपना काम छोड़ के
     मेरे पूरे शरीर पर
     लगा हुआ था टिंचर ।।
     मैं चल रहा था ऐसे
     जैसे मेरा एक टैर हो पंचर ।।

 मुझे देख कर किसी को दुख
 किसी को खुशी हो गया ।।
 मेरे पीछे गली में
 काना फुशी शुरू हो गया  ।।

    
है कौन कहाँ से रहा है   ।।
     ऐसा लगता है 
     हस्पताल से भाग रहा है ।।
     
     गेट खट-खटाने को हाथ बढ़ाऊँ 
     कि इस हाल में कौन पहचानेगा
     ये सोच के हाथ हटा जाऊँ  ।।
     कहीं यहाँ भी , मार खा जाऊँ

  खुद से लड़केहिम्मत कर के ।।
  गेट खट खटाया अपने घर  के
  आया भाई देखा मुझको
  वापस चला गया, सर पकड़ के ।।

 
वापस जाके माँ को बताया ।।
 माँ दौड़ी आई कीचन से
    उनका हाथ सना था बेसन से ।।
    मुझे देखते ही पहचान गई
    जब मेरा इमेजिनेशन टकराया।।
    ममता के भैवरेशन से

 बोली ये बेटा मेरा है
 जरुर किसी लड़की को छेड़ा है ।।
 माँ ने फिर भाई को बुलाया
 हाथ हटा तू अपने सर से ।।
 पानी लेआ बाल्टी भरके  ।।
 मेरे ऊपर पानी डलबाया ।।
       पानी डालते ही

मेरा सारा जख्म  धूल गया ।।
   मैं सच कह रहा हूँ तबसे
   लड़की को छेड़ना भूल गया 
   लड़की को छेड़ना भूल गया
                 जय हिन्द 🇮🇳
Thanks for reading. 📝       
                    Ashok Kumar

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