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आया सर्दी का मौसम ,
दुर हुआ अब सुस्ती।
नहा धोके धूप में बैठना
फिर सारे बदन में खूश्कि।
धूप में बैठ कर थोड़ा-थोड़ा,
गरम चाय की चुश्की।
देस्तो के संग हँसी ठहाके ,
इधर -उधर बात की फूश्कि।
यहाँ-बहाँ की चुगली चप्पा,
मत पुछो किसकी-किसकी।
फिर बारी-बारी सभी करेंगे,
परोस की काना फूश्कि।
काम तो वही सब करता है,
आदत है जैसा जिसकी ।
चाहो तो तुम भी इसे करलो,
है नए काम की लूश्की।
कोई बात समझ न आया तो,
पूछेगा इसका या उसकी।
किसी के कान में खुशुर-खुशुर,
किसी के कान में ठूश्की।
मिठी -मिठी धूप में जाके ,
करना कसरत और कुस्ती ।
तेल का मालिश सारे बदन में,
सर में डैंरफ और रूश्की।
धूप में खाना समोसे,पकौड़े,
होगा साथ में चटनी किस्की।
खा के मूली, गोभी, के पराठे,
कभी होगा डकार और हिच्की।
सारा दिन धूप में बैठना,
होगा जब सन्डे कीत छुट्टी।
पुराने गीत का आनंद लेना,
नई फिल्मों की टुस्की ।
Thanks
for reading
Ashok Kumar✍
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