।।हिन्दी दिवस।।
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हिन्दी दिवस पर मैं ।
ऐसा कुछ कर गया ।।
हिन्दी लिखने बैठा ।
पर बिन्दु से डर गया।
मैं पढ़ा लिखा कम था।
हिन्दी में हाथ तंग था ।।
लिखने को बैठ गया ।
मेरे इरादे में दम था ।।
बात सच्ची है मगर इसे ।
न झूठ समझ लेना ।।
गलती निकल आए तो।
ठीक करके पढ़ लेना ।।
धीरे-धीरे-धीरे मैं ।
आगे बढ़ रहा था ।।
मात्रा, कोमा और बिन्दु ।
मुझे तंग कर रहा था ।
फिर मैं मसाला लिख कर ,
बहन को जब मैं दिखाया ।
बोली म सा ठीक है ला में ,
डंडा नहीं लगाया ।
क्या मेरा हिन्दी में इतना,
गंदा हाथ हो गया,
कोमा बिंदु के साथ अब,
डंडा भी साथ हो गया ।
लिख कर रात को 12 बजे ,
अशोक ने फिर किया आराम ।
यहाँ भी डंडा गिर गया ,
हुआ कविता का पूर्ण विराम ।।
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Ashok Kumar ✍
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