जहाँ जाना गाड़ी से जाना,
और मोबाइल लेकर पर्स में ।
दुनिया के झमेले से हट केे बैठो ,
कुछ समय प्राकृतिक के स्पर्श में ।
नित्य समय कुछ न कुछ सभी ,
गवाँ देते
है यूहीं व्यर्थ में ।
बीत रहे
है सबके दिन ऐसे ,
जीवन के संघर्ष में ।
ये तो है मेरे सामर्थ में ,
कुछ समय निकाल के बैठो
प्राकृतिक के स्पर्श में
आँखों से चश्मा हटा के ,
देखो हरियाली आँखों से ।
स्वच्छ प्राण वायु को खींचो ,
तुम अपने दोनों नाकों से ।
ये तो है मेरे सामर्थ में ,
कुछ समय निकाल के बैठो,
प्राकृतिक के स्पर्श में।
चिकित्सा ग्रंथों में है लिखा,
कितने वैदों के विचार है ।
सुबह का सैर सपाटा ,
हमारा प्राकृतिक उपचार है।
ये तो है मेरे सामर्थ में ,
कुछ समय निकाल के बैठो,
प्राकृतिक के स्पर्श ।
पेड़ों के पत्तों से लटकते ,
ओस के बूंदों को स्पर्श करो ।
क्या कहती है वनस्पति ,
प्राकृतिक से सम्पर्क करो
ये तो है मेरे सामर्थ में ,
कुछ समय निकाल के बैठो,
प्राकृतिक के स्पर्श ।
वनस्पति से आती छ्न के हवा,
हमारे तन जब टकराएगा ।
जाने कैसे-कैसे रोगों को ,
अपने साथ में ले जाएगा ।
ये तो है मेरे सामर्थ में ,
कुछ समय निकाल के बैठो,
प्राकृतिक के स्पर्श ।
Thanks for reading📝
Ashok
Kumar✍
No comments:
Post a Comment