।। कल कल बहती मंदाकिनी ।।
कल कल बहती
मंदाकिनी।
पत्तों को
रगड़ के बहे पवन,
घुन घुन
गाते रागनी।
चट्टान के छातीपर चढ़ के,
झरना भी गीत गाए।
नदी के दोनों किनारा,
लहरों को पास बुलाए ।
कोयल की मीठी बोली,
जब कानों से टकराए।
पंछी भी
उड़ते इधर-उधर,
सब गाए और चह चाए।
काले बादल को
खींच के,
पर्वत
भी ओढ़
लिया है।
देख
देख ये हरे घास पर,
मोर भी नाच उठा है।
Thanks for reading 📝
Ashok Kumar ✍
यह पोस्ट यही पर खत्म होता है. यह कविता आपको कैसी लगी हमको कमेंट करके जरुर
बताए और इस आर्टिकल को सोशल मीडिया
पर शेयर करना और फॉलो ना भूले 🙂
अपना बहमूल्य समय देने के लिए, धन्यवाद।
No comments:
Post a Comment