।। मैं तो सागर की नानी।।


 ।। मैं तो सागर की नानी।।
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 बूंद बूंद ना कहो मुझे,
 मैं तो सागर की नानी हूं।
 धरती पर वनस्पति हमसे है ,
 जन जन के लिए मैं पानी हूं ।

        कहीं ठहरी मैं कहीं बहती,
        झरनों से गिरती वहां हूं ।
        धरती पर हरियाली हमसे,
        मैं पर्यावरण की  मां हूं ।

 आकाश से गिरी बूंद बनके,
 फिर उड़ी मैं बाप बन के ।
 हरियाली लहलाए वहां ,
 जहां गिरी मैं बूंद बनके।

      कहीं जमी मैं कहीं रुकी हूं ,
      मैं कहीं निरंतर बैठी हूं ।
      किस्मत ऐसी पाई हूं की,
      मैं हरदम चलती रहती हूं ।

 नदी नदी में मैं वहती हूं,
 तलाब में जमके खड़ी हूं।
 मुझसे धुलकर सब शुद्ध होता,
 मैं धरती पर सबसे बड़ी हूं
 Thanks for reading 📝
            Ashok Kumar



    
       


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