।। वो आई पिंक जीपर मे।।
मैं बैठा था इंतेज़ार
में
वो आई, पिंक
जीपर मे
वो बात भी ना कर पाई
जो करती रही, मुझसे टियूटर में
ना मैं बोला ना वो बोली
बाते हो गई ,सारे नजर में
वो अपनी कातिल आखों से
आग लगा गई, मेरे जिगर में
मैं बैठा था इन्तेजार में
वो आई, पिंक जीपर में
उसने मुझे देखा गुस्से में
जो करती रही, मुझसे टियूटर में
ना मैं बोला ना वो बोली
बाते हो गई ,सारे नजर में
वो अपनी कातिल आखों से
आग लगा गई, मेरे जिगर में
मैं बैठा था इन्तेजार में
वो आई, पिंक जीपर में
उसने मुझे देखा गुस्से में
जैसे मैं बैठा हूँ,उसके घर में
जाने मेरा क्या लुट गई वो
अब यहाँ वहाँ मैं,दर बदर में
बिन परचा ,बिना खरचा के
चर्चा है मेरा, सारे सहर में
बेचैन हूँ मैं कई हफ्तों से
मन भी नहीं, लगता दफतर में
मैं बैठा था इन्तेजार में
वो आई, पिंक जीपर में
भगदर है मेरा दिल जिगर में
वो आई, पिंक जीपर में
भगदर है मेरा दिल जिगर में
और वो आराम
से,बैठी हैं घर में
मैं दिल थामें तरप रहा हूँ
वो खुशी में झुमे अपने
घर में
वो आई पिंक
जिपर में
मैं रहा उसके
इंतेज़ार में।
Thanks for reading📄
Niranjan✍
हमारी और भी कविताएं हैं पढ़ें ।
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दादाजी, विद्यार्थी, जल,हास्य व्यंग
पेड़, मानसून,गौरैया
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