।। मासूम, गरीबी ,और लाचारी ।।
कोई तो सुनो दर्द हमारी
जिसके तन पर कपड़ा नहीं,
और
पेट हो खाली खाली ।
इसे
क्या पता क्या होता है ,
दशहरा
, होली, दिवाली ।
जिस दिन इन्हें कपड़ा मिल जाए,
उस दिन होली इसका है ।
जिस दिन कोई मिठाई दे दे ,
उस दिन को दिवाली समझता है।
कब
लाएगा पापा खाना,
ये
मां से पूछते रहते हैं।
ये
मासूम खाने की आस में,
देर रात जागते रहते हैं
।
इनका भूख बदल जाता है,
बार-बार के प्यास में ।
कई बार सुबह हो जात है,
मासूम को भोजन की आस में।
Thanks for reading 📝
Ashok Kumar ✍
यह पोस्ट यही पर खत्म होता है. यह कविता
आपको कैसी लगी हमको कमेंट करके जरुर
बताए और इस आर्टिकल को सोशल मीडिया
पर शेयर करना और फॉलो ना भूले 🙂
अपना बहमूल्य समय देने के धन्यवाद।
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