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Thursday, January 3, 2019

।। मासूम, गरीबी ,और लाचारी ।। कोई तो सुनो दर्द हमारी


।। मासूम, गरीबी ,और लाचारी ।।
कोई तो सुनो दर्द हमारी




   





   जिसके तन पर कपड़ा नहीं,
   और पेट हो खाली खाली ।
   इसे क्या पता क्या होता है ,
   दशहरा , होली,  दिवाली ।

ये भी पढें :-
·         ।। याद आया अपना बचपन ।।   


        जिस दिन इन्हें कपड़ा मिल जाए,
        उस  दिन  होली  इसका  है ।
        जिस दिन कोई मिठाई दे दे ,
        उस दिन को दिवाली समझता है।
 
    कब लाएगा पापा खाना,
    ये मां से पूछते  रहते  हैं।
    ये मासूम खाने की आस में,
    देर  रात  जागते  रहते  हैं ।

         इनका भूख बदल जाता है,
         बार-बार  के  प्यास  में ।
         कई बार सुबह हो जात है,
         मासूम को भोजन की आस में।

               Thanks for reading 📝
                            Ashok Kumar
यह पोस्ट यही पर खत्म होता है. यह कविता 
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