।। अपना घर मुझे बनाने दो ।।
कोई भी नहीं रोको के मुझको,
मुझे
एक एक तिनका लाने दो।
बरसात
के दिन आने वाली है,
अपना घर मुझे बनाने दो
।
भाग भाग के आई
हूं,
जल्दी-जल्दी हर बर में।
अपने बच्चे को छोड़ा है,
मैंने पड़ोसी के घर में।
एक एक तिनका को मुझे,
दूर दूर
से लाना पड़ेगा।
तब सात
आठ दिन के बाद,
कहीं
मेरा घर बनेगा।
पिछले साल घर नहीं बनाया,
डर लगता वह दिन सोच के।
पूरा बरसात का मौसम निकाला,
मैं
डाली और पत्ते में छुप के।
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Ashok
Kumar ✍
यह पोस्ट यही पर खत्म होता है. यह कविता
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अपना बहमूल्य समय देने के धन्यवाद।
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