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Friday, June 1, 2018

कहता है भारत बदल रहा है













।। क्या इसी को बचपन,

        कहते हैं   ?

कैसा होगा इसका जीवन
40   50    55   में  ।।
जो गंदे नाले में कचड़ा
ढूँढ़  रहे   बचपन  में ।।



       तपती धूप कांधे पर बोड़ी
       पैरों में नहीं चप्पल कि जोड़ी ।।
       घूम -घूम कर  इधर- उधर
       सारा दिन कचड़ा उठाते हैं  ।।

इन्हें भी पढ़िये :-
रोज शाम को इसे बेच कर
पेट कि आग बुझाते हैं ।। 
जिसे सुबह शाम रहता है
 खाने जीने की तरस का ।।

       उसको क्या डर होगा भला
       कोई बैक्टीरिया वायरस का ।।
       हम तो साफ पानी के 
       किचड़ से भी डरते हैं  ।।

ये  बच्चे  गंदे  नाले  के 
किचड़ से रोज  ही  लड़ते  हैं  ।।
हम बात करते हैं केवल
अपनें बच्चे उसके बचपन की ।।


     अपनें ही देश में क्यों 
      सोच पराए पन की  ।।
      पढ़े लिखे लोगो से देश का
      समाज  भरा  पड़ा  है  ।।

पर क्षेत्र बाद अब भी सभी में
ऐसे कूट- कूटके भरा है ।।
मेरे राज्य का  ये बच्चा नहीं
 मेरे राज्य मे ऐसा नही  ।।


       लोग बात करते हैं
       अपने राज्य और परिवेश का ।।
       है किसी भी राज्य का बच्चा 
       पर है तो भारत देश का  ।।
       पर है तो भारत देश का ।।
     
 दो शब्द ..  शिक्षा हमें समझदार बनाता है ,
                  समाज उजाड़ नहीं बनाता
Thanks for reading         📝
                           Ashok kumar

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