बसंत व्यंग्य ।।
आया बसंत सब पेरों पर,
नई कोपले मंजर आगए ।
फूल आगए खजूर पे,।
आम भी मंजरा गए ।
पंछि की किलोल कोलाहल,
वन में हर ओर उल्लास है।
सब के आंखों में शरारत,
सब के होठों पर प्यास है।
खुसूर
खुसूर दो मैंना बैठी,
बतिया रही थी
डाली पे।
बुरी नजर से देखता है,
कौवा कोयल के साली को।
लगता नीयत ठीक नहीं,
पीके खजूर के तारीख को।
डाली डाली ढूंढ रहा है,
कौवा कोयल के साली को।
. मेरे साथ चलो तुमको मैं,
दूर-दूर उड़ना सिखा दूं।
साड़ी उम्र तमू कूहकेगी,
तुम्हें अपनी बोली सिखा दूं।
पहले से है मेरी मीठी बोली,
तुम कांय
कांय सिखाएगा।
खुद सबसे गाली खाता है,
मुझे भी गाली खिलाएगा।
आया बसंत ऋतु
आया बसंत ऋतु
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ऐसे प्यार करो ।
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- ।। जिसको हम हिंदुस्तान कहते हैं ।
लुखी भी किलकारी मारी,
कूदक कूदक कर डाल पर।
मैना ने भी किया ठिठोली,
कोयल के साली की बात पर।
परसों बोगले की बहन को,
नहाते कौवा झांक रहा था।
बगुले की टोली में बैठ के,
कौवा डींगे हांक रहा था।
बोगला बोला बरसों से तेरा,
चाल चलन वही है।
शर्म नहीं आता तेरे घर,न
मां , बहन नहीं है।
आया बसंत ऋतु
आया बसंत ऋतु
यहां वहां भिन्न-भिन्न करते,
मधुमक्खियों की टोली।
भंवरा कहे तितली से ,
तुम बन जा मेरी हमजोली।
तुम भँवरा
और मैं तितली,
मुझे हमजोली बनाएगा।
सारा दिन भन, भन ,भन,
तुम मेरे कान को खाएगा।
आया बसंत ऋतु
आया बसंत ऋतु
तोता के संग बैठ के,
कानाफूसी करे गौरैया।
देख गटारी छाती पीटे,
हाय दैया हाय मैया।
हंसने
लगी चिड़िया डाली पर,
जब गपशप मार रहा था ।
जब गिलहरी अपने पूछ के,
झटपट बाल
सवार रहा था।
आया
बसंत ऋतु
आया बसंत ऋतु
ततैया भी हो गया आवारा,
रहकर भंवरों के साथ
में।
मस्ती मस्ती में काट लिया,ण
जाके बंदर के नाक में ।
हंसने लगे डाली पर बुल बुल,
देख बंदर के इस हाल पे।
बंदर अपने नाक को जब,.
रगड़ रहा था डाल में।
आया बसंत ऋतु
आया
बसंत ऋतु
हंसते-हंसते बुगले बटेर के,
बल पड़ गया लंबे गर्दन में।
जब बंदर सूरत देख रहा था,
झील के जल दर्पण में ।
आया बसंत ऋतु
आया बसंत ऋतु
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Ashok Kumar ✍
यह पोस्ट यही पर खत्म होता है. यह कविता
आपको कैसी लगी हमको कमेंट करके जरुर
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अपना बहमूल्य समय लिए देने के धन्यवाद।
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