।। जिस माँ के बेटा तिरंगे में
लिपट के ।।
कब तक वीर सपूतों को सरहद पे गवांते
रहगें
कब तक उस मां को रुलाते रहगें ।
जिस माँ के बेटा तिरंगे में लिपट के,
सरहद से घर आते रहेंगे।
क्या दिल्ली वालों अब
भी।
सेना
सीमा पर ध्यान नहीं,
एक के बदले दस मारे।
इतना
भी सामर्थ्य वाण नहीं,
सीमा बल का नाम देकर,
क्यों सेना
तैयार किया है।
कंधे पर बंदूक लेकर,
हाथ उसका बांध दिया है।
इसलिए सपूतों को मरवाते
हैं,
उस मां को रुलाने के लिए।
हर वर्ष
शहीदों को याद करके,
तिरंगा लहराने के लिए।
एक
बार अपने जवानों को।
खुद को भी फैसला करने दो,
क्या कर सकता है देश के लिए,
अपनी मर्जी से खुल के लड़ने दो।
अपनी मर्जी से खुल के लड़ने दो।
जय हिंद
जय हिंद
जय हिंद की सेना
Thanks for reading 📝
Ashok Kumar ✍
यह पोस्ट यही पर खत्म होता है. यह कविता
आपको कैसी लगी हमको कमेंट करके जरुर
बताए और इस आर्टिकल को सोशल मीडिया
पर शेयर करना ना भूले 🙂
अपना बहमूल्य समय लिए देने के धन्यवाद।
No comments:
Post a Comment