जंग चाहिए या शान्ति ।
तुम खुद ही चुन लेना ।।
घर में दादा दादी हो उनसे ।
इन्हें भी पढ़िये :-
तुम जैसे कायर हम नहीं ।
जो घुप छुप के वार करते हैं ।
हम हिन्दुस्तानी सीने पर ।
गोली खाकर लड़ते हैं ।।
हम कब हारे हैं तुमसे जो ।
अब हम तुमसे हारेंगे ।।
हम तो वो हैं कि तुम्हारे ।
घर में घुस के मारेंगे ।।
हमने तो अपने तिरंगा को ।।
उसपार भी लहराया है ।।
सरहद क्या ।
हमने दुश्मन को ।।
घर तक छोड़ के आया है ।।
हर बार ये सोच के माफ किया।
तेरी बचपन की शरारत को ।।
वरना किसमें ये दम है आ के ।
आँख दिखाए भारत को ।।
जिस देश की आधी जनता सोए ।
बिना पानी बिना अन्न के ।।
घर में रसोई गैस नहीं ।
बात करता है परमाणु बम के ।।
इस बार अगर जंग किया तो ।
दुनिया को याद रहेगा ।।
न रहेगा सीमा ।
न सीमा विवाद रहेगा ।।
इन्हें भी पढ़िये :-
- माँ मुझे बड़ा नहीं होना
- डॉक्टर कैसे कैसे
- जिधर से सूरज निकलेगा,उधर ही सब उड़ जाती है।
- जिसके साथ बचपन में खेला था , वो भी अब गैर सा लगता है ।
उस पार तुम खुश रहो ।
इसमे अपना क्या जाता है ।।
हर बार ये सोच के छोड़ दिया ।
तुमसे कोई पुराना नाता है ।।
अगर ऐसे हो लड़ते रहे तो ।
एक दिन हारे जाओगे ।।
एक न एक दिन एक एक कर के ।
सारे मारे जाओगे ।।
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Ashok Kumar
यह पोस्ट यही पर खत्म होता है. यह कविता
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