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Friday, July 12, 2019

।। मानसून का पानी।।


  ।। मानसून का पानी।।

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मैं मानसून का पानी ,         
मैं चाहूं बहू जहां से।.         
मेरी मर्जी जिस चीज को ,
मैं लेजाऊं साथ बहा के ।


    है ऊंचा नीचा कुछ भी नहीं,
    मैं पर्वत चट्टान को बहा दूँ ।
    मेरी मर्जी मैं चाहूं जहां से,
    वही अपना रास्ता बना लूं ।

ना सीमा रोक सका मुझे,
ना बांध  में  मैं  बंधी  हूं ।
मैं जब चाही जहां से भी,
वहीं  से  ही  मैं  ही  हूं ।

     हो चाहे जैसा जितना भी,
     सीमेंट सरिया किसी के भीतर में।
     मैं कुछ  घंटों  में  ही  बदल दूं ,
     विकास, प्रगति, को कीचड़ में।

मैं तो सीमेंट सरिया को,
धूल ही बस समझती हूं।
मैं इस पूरी धरती को ही,
अपना पथ समझती हूं।

Thanks for reading 📝
           Ashok Kumar


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