।। लुक्खी,गिलहरी ।।
कभी मेरे आंगन गूँजती थी ।
गिलहरी की किलकारी ।।
जब मेरे घर के पीछे था ।
छोटा सा फुलवारी ।।
इन्हें भी पढ़िये :-
आम,अमरुद,लीची,जामुन के ।
और बहुत से पेड़ थे
।।
सुबह शाम वहाँ पक्षियों के ।
रोज ही कितने शोर थे। ।।
कौआ काँय-काँय मैना टाँय-टाँय ।
और कोयल भी गाते थे । ।
कभी कभी अमरूद खाने ।
तोता भी आ जाते थे
।।
रोज गिलहरी बच्चों के संग ।
अमरूद के पेड़ पर चढ़ जाते थे ।।
खुद खाते थे कुतर-कुतर अपने ।
बच्चों को भी खिलाते थे ।।
कुछ पास लटकता रहता था ।
और कुछ बहुत दुर थे ।।
उस पेड़ पर लगे हुए ।
बहूत सारे अमरूद थे ।
न उस बाग का होता देखभाल ।
न उस बाग का कोई माली ।।
बच्चों के लिए भाग-भाग के ।
करती अमरूद की रखवाली ।।
याद है उस फुलवारी मे ।
दो चार गिलहरी रहते थे ।।
कभी पेड़ और दोवारों पे ।
सारा दिन भागते रहते थे ।
अब न रहा वो पेड़ पौधा ।
और न रही वो फुलवारी ।।
खाना के लिए बच्चा लेकर ।
भटक रहा है गिलहरी ।।
भटक रहा है गिलहरी
.
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