।। दिवाली का धूआं पचा नहीं ।।
दिवाली का धूआं पचा नहीं,
नव वर्ष का धूआं परोस दिया।
सांसो में अफरा-तफरी ,
और गले में खरांश दिया ।
इस जहरीली धूआं से
अब,
जान बचा रहा हूं ।
पेट में खाना कम।
फेफड़े से धूआं पचा रहा हूं।
.
अब वो स्वाद नहीं रहा,
धूल मिट्टी और डस्ट में।
फिर से धूआं खाने को मिला
है ,
लंच और ब्रेकफास्ट में ।
पानी के जगह
अब हम,
धूआं पीके
प्यास बुझाते हैं।
सुबह नाश्ते
में हम धूआं ,
खाकर बाहर जाते हैं ।
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फिर वही पटाखे का धूआं,
लाखों टर्न हवा में डाल
दिया।
फिर से नाक और मुंह पर
,
सबने कपड़ा बांध लिया
।
Thanks for reading 📝
Ashok
Kumar ✍
यह पोस्ट यही पर खत्म होता है. यह कविता
आपको कैसी लगी हमको कमेंट करके जरुर
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अपना बहमूल्य समय देने के धन्यवाद।
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