Breaking

Thursday, January 3, 2019

।। दिवाली का धुआं पचा नहीं ।।


।। दिवाली का धूआं पचा नहीं  ।।









दिवाली का धूआं पचा नहीं,
नव वर्ष का धूआं परोस दिया।
सांसो  में  अफरा-तफरी ,
और गले में खरांश दिया ।

         इस जहरीली धूआं से अब, 
         जान  बचा  रहा  हूं ।
         पेट में खाना कम।
         फेफड़े से धूआं पचा रहा हूं।
.
  अब वो स्वाद नहीं रहा,
  धूल मिट्टी और डस्ट में।
  फिर से धूआं खाने को मिला है ,
  लंच  और  ब्रेकफास्ट  में ।

        पानी के जगह अब हम,
        धूआं पीके प्यास बुझाते हैं।
        सुबह नाश्ते में हम धूआं ,

  
   फिर वही पटाखे का धूआं,
   लाखों टर्न हवा में डाल दिया।
   फिर से नाक और मुंह पर ,
   सबने कपड़ा बांध लिया ।
 
   Thanks for reading 📝

               Ashok Kumar
यह पोस्ट यही पर खत्म होता है. यह कविता 
आपको कैसी लगी हमको कमेंट करके जरुर 
बताए और इस आर्टिकल को सोशल मीडिया
 पर शेयर करना  और फॉलो ना भूले 🙂 

अपना  बहमूल्य  समय  देने के धन्यवाद।  

No comments:

Post a Comment