।। पेट भी मेरा नहीं भरता ।।
कैसा मौसम आया है,
भूखे
ही रहते हम हैं।
पेट
भी मेरा नहीं भरता,
फूलों
में रस कम है।
एक तो इस मौसम में,
फूल भी मिलता कम है।
सौ फूलों का रस पिया,
फिर
भी भूखे हम हैं।
पतझड़ का मौसम में,
पेड़ो पर पत्ते कम है।
क्या
करूं भोजन के लिए,
कितना
भटकते हम हैं।
- ।। कहां गई थी छोटी चिरैयाँ ।।
- ।। अभी नहीं फल का मौसम ।।
- ।। अपना घर मुझे बनाने दो ।।
- ।। कहां गए वो रिश्ते नाते।।
तीन मास की प्रतीक्षा ,
हमें
भी करना पड़ेगा।
जब आएगा ऋतु बसंत,
तो फूल ही फूल खिलेगा।
Thanks for
reading 📝
Ashok Kumar ✍
यह पोस्ट यही पर खत्म होता है. यह कविता
आपको कैसी लगी हमको कमेंट करके जरुर
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अपना बहमूल्य समय देने के लिए, धन्यवाद।
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