ये हरियाली न जाने ।
हम कब तक देखेगें ।।
लोग प्लास्टिक के थैले को ।
जब ऐसे फेकेगें ।
वर्षा तोअब कम होती है ।
कम घिरती है घटाएँ ।।
वन को हमने काट-काट कर ।
मिटा दी इनकी छटाएँ ।।
इन्हें भी पढ़िये :-
हम कब तक देखेगें ।।
लोग प्लास्टिक के थैले को ।
जब ऐसे फेकेगें ।
वर्षा तोअब कम होती है ।
कम घिरती है घटाएँ ।।
वन को हमने काट-काट कर ।
मिटा दी इनकी छटाएँ ।।
इन्हें भी पढ़िये :-
- क्यों नहीं आती मेरे घर
- दिल करता है मेरा मैं
- माँ तू भगवान के हाथों की
- लकड़ी चोर मुर्दा
- आज वर्षो बाद फिर ।शहर में दंगा भरका
सारश,बत्तख,बटेर,बोगले ।
फिर हम न पाएगें ।।
शायद हम इसे देखने ।
चिड़ियाँ घर जाएगें ।।
चिड़ियाँ घर जाएगें ।।
चिड़ियाँ घर जाएगें ।।
Thanks for reading 📝
Ashok Kumar✍
यह पोस्ट यही पर खत्म होता है. यह कविता
आपको कैसी लगी हमको कमेंट करके जरुर
बताए और इस आर्टिकल को सोशल मीडिया
पर शेयर करना और फॉलो ना भूले 🙂
अपना बहमूल्य समय देने के धन्यवाद।
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