आज वर्षो बाद फिर ।
शहर में दंगा भरका है ।।
इन्हें भी पढ़िये :-
वो मेरे गली का लड़का है ।।
कहते है मोहल्ले वाले ।
वो लड़का बड़ा ही प्यारा था।।
अपने बूढे माँ बाप का ।
वो एक इकलौता सहारा था।।
इन्हें भी पढ़िये :-
हर ओर है मारा मारी ।
हर ओर तरफ यही शोर है ।।
क्या हमारा राष्ट्रीय एकता का।
धागा इतना कमजोर है ।।
अज्ञानता के अँधेरे से ।
जाने कब बाहर आएगें ।।
अपने ही देश में अपनो का ।
हम कब तक खून बहाएंगे ।।
हम सभ्य समाज का ।
खुद को रचयिता कहते है ।।
हम मंगल पर पहुँच कर भी।
अब तक जंगल में ऱहते है ।।
बापू ,शास्त्री का सपना ।
लगता है अधूरा रह गया ।।
हम सब भारत वासी हैं ।
ये नारा बनके रह गया ।।
ये नारा बनके रह गया ।।
Thanks
for reading 📝.
Ashok Kumar
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