हास्य व्यंग्य ।। किक्कर का पेड़ ।।

।।  किक्कर का पेड़।।

 tree of kikar






वो इस कदर खो गई अफसाने में

की नमक भी नही डाला खाने में ।।


      जरा  सी देर क्या हो गया नहानें में

      बीबी  डोरी भी नहीं डाला मेरे पैजामे में  ।।

नहा कर बाथरुम से बाहर आते ही देखा
 बीबी गुस्से में इधर से उधर चल रही थी ।।
   
     बुझे चूल्हे पर दूध रख खा है
      दूध तो ठंडा था पर बीबी उबल रही थी

इन्हें भी पढ़िये :-
बोली बिना नमक के खाना है तो खा जाओ
नहीं ताे नमक के लिए बाजार जाओ ।।

       मुझे बीबी की  बात खल गया
      और मैं निक्कर में ही घर से निकल गया ।।

मुझे निक्कर मे देख कर मेरा कुत्ता
 हाथ धोके मेरे ही पीछे  पड़  गया ।।

      मै आगे कुत्ता मेरे पीछे भाग रहा था
      कुत्ता रुकने का नाम नहीं
      मैं बुरी तरह हाफ रहा था ।।

कुत्ता मुझे कोई और समझ रहा था
निक्कर में अपने  ही मालिक को
मेरा कुता चोर समझ रहा था ।। 
  की निक्कर में ही किक्कर पर चढ़ गया ।।
 किक्कर से मैं  कुत्ता को डाँट रहा था
 कुत्ता भौंक -भौंक कर मुझे ताक रहा था ।।

      जाने कैसा मेरा उस दिन के योग थे
      किसी को आवाज भी लगाता कैसे   ।।

      उधर से गुजरने वाले सभी
      मेरे गली के ही लोग थे ।।

लोग सोच लेता की इसकी बीबी ने मारा है
इसलिए सारी रात किक्कर पर गुजारा है ।।
 सारी रात किक्कर पर गुजारा है ।।

Thanks for reading         📝
                                    Ashok Kumar
यह पोस्ट यही पर खत्म होता है. यह कविता 
आपको कैसी लगी हमको कमेंट करके जरुर 
बताए और इस आर्टिकल को सोशल मीडिया
 पर शेयर करना  और फॉलो ना भूले 🙂 
अपना  बहमूल्य  समय  देने के धन्यवाद।  

कोई टिप्पणी नहीं

Blogger द्वारा संचालित.