।। मैं
पंछी हूं , मैं पंछी हूं ।।
मैं पंछी हूं , मैं पंछी हूं ,
हवा में योगा मैं करती
हूं ।
हरदम स्वस्थ मैं रहती
हूं ,
दूर-दूर तक मैं उड़ती हूं ।
हवा में विचरण मैं करती हू
प्राकृतिक में रंग भर्ती हूं
।
जिस डाल पर जा कर बैठी,
उसको भी सुंदर करती हूं ।
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जब
चाहीे मैं उड़ी हवा में ,
जब चाही बैठी
डाल पे ।
सबके मन को मैं भाती
हूं ,
जाऊं जहां जिस हाल
में ।
हवा में ही भोजन करती हूं ,
जी चाहे जहां मैं फिरती हूं ।
बस पानी
पीने के लिए ही,
जमीन
पर मैं उतरती हूं।
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Ashok Kumar✍
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