चिड़याँ-चिड़याँ तू बतला।
मेरे घर में क्यों नहीं आती हो ।।
न खाने चावल का दाना ।
मेरे घर में क्यों नहीं आती हो ।।
न खाने चावल का दाना ।
न पानी पीने आती हो ।।
हमने क्या बिगड़ा तुम सबका ।
तुम सबने मेरा दिल तोड़ दिया ।।
पहले अँगान का काटा पेड़ ।
गमला भी लगाना छोड़ दिया ।
हम पंछी तो पेड़ और ।
पौंधों के सहारे जीते थे ।।
जिसपर खिलाता था फूल कोई ।
उसका रस पीकर जीते थे ।।
ये भी पढें :-
तुम सबने मेरा दिल तोड़ दिया ।।
पहले अँगान का काटा पेड़ ।
गमला भी लगाना छोड़ दिया ।
हम पंछी तो पेड़ और ।
पौंधों के सहारे जीते थे ।।
जिसपर खिलाता था फूल कोई ।
उसका रस पीकर जीते थे ।।
ये भी पढें :-
- डॉक्टर हर 15 दिन के बाद
- डॉक्टरों का आतंक
- माँ तू भगवान के हाथों की
- दिल करता है मेरा मैं
- धुआं में शहर , हवा में जहर
- क्या तेरे बच्चे हैं भूखे ,इसी लिए कुछ लाई हो
तुम्हारे घर कैसे आऊँ ।
भोजन के लिए उड़ते रहते हैं।
Thanks for reading 📝 Ashok Kumar
यह पोस्ट यही पर खत्म होता है. यह कविता
आपको कैसी लगी हमको कमेंट करके जरुर
बताए और इस आर्टिकल को सोशल मीडिया
पर शेयर करना और फॉलो ना भूले 🙂
अपना बहमूल्य समय देने के धन्यवाद।
No comments:
Post a Comment